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मंच पर उपस्थित सभी आदरणीय जनों को प्रणाम करता हूँ. कुछ पुराने और कुछ नए चेहरे इस मंच पर उपस्थित हैं, मैं ही बहुत देर में आ पाया. आज बहुत समय बाद कोई कविता पोस्ट कर रहा हूँ, उम्मींद है आप सब मेरे गुण-दोष नज़रंदाज़ कर पहले की तरह ही प्यार देंगे. कविता की कमियां बताने में कोई भी संकोच न करे क्योंकि कमी पता चलने पर हम उसे अगली कविता में सुधार कर सकते हैं..सभी का अपनी कविता पर स्वागत करते हुए पंक्तियाँ प्रारम्भ करता हूँ-
आँख बन गई है सज़ल देखिये
है सूखा पड़ा नयनजल देखिये
अब कहेंगे नहीं हम कभी आपसे
आखिरी मर्तबा एक पल देखिये
बिन तुम्हारे जिए हम ज़माने कई
याद आये मुझे दिन पुराने कई
तुम बिना चाँदनी अग्नि जैसी लगी
रो के बीते हैं सावन सुहाने कई
एक दिन शब्द के भी अकिंचन थे हम
गीत का ही बना अब महल देखिये
अब कहेंगे नहीं…..
तुम बिना भूल बैठे हैं बातें कई
करवटों में ही सिमटी हैं रातें कई
लोग हँसते हैं अब मेरे हालात पर
छेड़ जाते हैं ज़ख्म आते-जाते कई
पीड़ा के जल से है सींचा गया
गम के दलदल में खिलता कमल देखिये
अब कहेंगे नहीं…..
तुने थामा नहीं हाथ मेरा तो क्या
खुद के ही पैर पर हम खड़े हो गए
जो छोटा समझता था कल तक मुझे
आज उसी के लिए हम बड़े हो गए
तोड़ देता था वादा जो तुमसे कभी
अपने वादे पर है वो अचल देखिये
अब कहेंगे नहीं…..
बिन तुम्हारे मुझे दौलत, शोहरत मिली
बस तुम्हारे शिवा नहीं कोई कमी
तुम जो होती तो होता जीना मुकम्मल मेरा
पर तुम्हारे बिना है कली अधखिली
अमृत भरा है कलश में मेरे
मगर पी रहा हूँ गरल देखिये
अब कहेंगे नहीं…..
तुने छोड़ा मुझे तो मैंने उड़ाने भरी
मेरी सब ख्वाहिशे आसमां पर गिरी
ख्वाब में भी दुनियाँ ने ठुकराया पर
अब हकीकत में मुझको बुलाने लगी
यह सम्मान सारे अधूरे से हैं
है अधूरी पड़ी यह गज़ल देखिये
अब कहेंगे नहीं…..
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