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तू न होती अगर, गीत बनते नहीं
मैं न गाता कभी, लोग सुनते नहीं.
तू मेरी लेखनी
तुम बिना कैसे आवाज देता उसे
देखता हूँ तुझी में सदा मैं जिसे
उसके आहट का शब्दों में चित्रण कभी
तू न करती तो मैं कर न पाता नहीं
तू मेरी लेखनी
जब भी उसने कहा मुस्कुराओ सखे!
तुम हँसो जिससे मेरा भी दिल न दुखे
मैं आभार तेरा ही माना वहीँ
वो तुझसे मिली, मैं हूँ तेरा ऋणी
तू मेरी लेखनी
उसकी आवज़ ही मन में गूँजे सदा
मुझको भाने लगी उसकी हर एक अदा
जब भी मिलने बुलाया है उसने कहीं
बिन तेरे साथ के मैं भी पहुँचा नहीं
तू मेरी लेखनी
मैं तेरे एहसान के बोझ से हूँ दबा
पर मुझे तू न दे इतनी लम्बी सजा
बिछुड़ना नहीं यूँ तू मुझसे कभी
बिन तुम्हारे मेरा कोई भी अब नहीं
तू मेरी लेखनी
मत सुनाओ मुझे धर्म और शास्त्र को
मैं तुम्हारे लिए सह लूँ ब्रम्हास्त्र को
तेरे कारण मेरी सारी विपदा टली
बिन तुम्हारे रहूँगा मैं जीवित नहीं
तू मेरी लेखनी
बात सुनकर तेरी शास्त्र घबरा गए
झुक गयीं नितियाँ अस्त्र शरमा गए
फिर मेरी तो औकात कुछ भी नहीं
पर तुम्हें छोड़कर जाने दूँगा नहीं
तू मेरी लेखनी
बन्द करता हूँ लिखना मैं इस भाग को
बस बनाए रखना अपने अनुराग को
फिर लिखूँगा तुम्हें वचन देता अभी
बस तुम रूठना अब न मुझसे कभी
तू मेरी लेखनी
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