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आभार

चलो कविता लिखें और मस्ती करें
चलो कविता लिखें और मस्ती करें
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प्रथम आभार श्री मात-पिता का,
जिनसे मिट्टी को मिला जीवन.
न देखा मेरे दोषों को,
वारा मुझ पर अपना तन-मन.

द्वितीय आभार उस परम-ब्रम्ह का,
जिनसे प्राण प्रदाता पिता मिला.
जब भी भौतिक पतझड़ आई,
मन के सावन को दिया खिला.

फिर आभार आप सबका,
जिनसे मिला मार्गदर्शन.
न देखा कभी न मिलन हुआ,
पर मिला बहुत ही अपनापन.

इस मंचराज के हम आभारी,
जो बने मेरे संपर्क माध्यम.
सबको अवसर कहने-सुनने का,
सब अन्दाजे अपनी प्रतिभा, दम.
जो भी मेरे शुभ-चिन्तक हैं,
हम उम्र मित्र और अग्रज.
जिसने कविता श्रृंगार बनी,
नमनीय ऐसे साधु जन.

जितने भी गद्दार मित्र हैं,
जिनसे मित्रता व्यापार बनी.
ऐसे मित्रों का भी आभारी,
इनसे करुण कवित् दो-चार बनी.
जिनका जिक्र नहीं कविता में,
उनका भी मैं आभारी हूँ.
अगर न क्रोधित हों मुझपर,
तो कहलायें मेरे उपकारी.

भाषा, शब्द और हिंदी माँ,
इन सबका आभार नहीं.
बस कृपा बरसती रहे प्रलय तक,
फिर कोई और विचार नहीं.

गर समयाभाव न होता हो,
कविता ये होती खतम नहीं.
समय कोई पैदा कर दे,
ऐसी होती कोई जतन नहीं.

पुनः आभार आप का पाठक,
जो कविता पर समय दिया.
डरते-डरते शुरुआत हुई,
अब प्रेम-वचन से अभय किया.

एक बात है कहना सब से,
एक कामना मन के अंदर.
जीवन भर हो साथ सभी का,
चलती रहे ये कलम निरंतर.
पुनः बहुत आभार प्रगटकर,
बंद कर रहा ये प्रकरण.
हे हिंदी माँ! गले लगा लो,
नमन कर रहा चरणों पर.

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