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सच्चा ईश्वर भाग- 2

चलो कविता लिखें और मस्ती करें
चलो कविता लिखें और मस्ती करें
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जिंदगी में सब कुछ दिखा है
मैंने पहले भी लिखा है
“सच्चा ईश्वर” एक कविता लिखी थी
जो मैंने अपने माँ से सुनी थी

आज भी कुछ लिखने को मन हुआ है
पर क्या लिखूं सब तरफ धुंआ है
लिखना नहीं है मुश्किल मैं मानता हूँ
पर लिखना क्या है ये नहीं जनता हूँ

पहले तो दिन में सूरज, रात में चांदनी का उजाला रहता था
मेरे मुंह में माँ के हाथो का बना निवाला रहता था
माँ से दूर जो हुआ तो मैं खा नहीं पाता
ये शहरों का भोजन मुझको नहीं भाता

अब तो सिर्फ जीने के लिए खाना है
न जाने कितनी दूर अपना ठिकाना है
किसी तरह मंजिल को पाना है
जहाँ अपनी दुनियां बसाना है

माँ-बाप को ही भगवान मानकर,
घर को ही मंदिर बनाऊंगा
यारों बंद करता है “आशीष” लिखना
आगे की कविता फिर कभी सुनाऊंगा

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